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Political awareness in Bilaspur district
बिलासपुर जिले में राजनीतिक जागरूकता
Dr. Jeevan Lal Jaiswal 1
1 Department of History, India
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ABSTRACT |
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English: The establishment of British rule in India led to internal conflict and division among Indians, which naturally led to an anti-British sentiment among Indians. Chhattisgarh was not untouched by this. Political awareness was taking root in Chhattisgarh. The Revolution of 1857 was its first and major attempt. "Although the 1857 rebellion by Indian soldiers was the first major step towards the freedom struggle, the British rule over Indians began through deceit and fraud. Therefore, it was natural for Indians to be angry with the British. This led to the beginning of the effort to end British rule." According to Pt. Sundarlal Sharma, "If the Revolution of 1857 had not occurred, the courage, drive, and vitality of Indians would have been destroyed, further boosting the morale of the British. Indians would have become like African tribesmen, just as the Europeans destroyed African culture and Europeanized it." Hindi: भारत में अंग्रेजी शासन की
स्थापना से भारतीयों
में आपसी
संघर्ष एवं फूट
के कारण
हुआ था
जिससे भारतीय लोगो में
अंग्रेजो
के प्रति
विरोधी प्रवृत्ति
होना स्वभाविक
था छत्तीसगढ़
इससे अछूता
नही रहा।
छत्तीसगढ़
में राजनैतिक
जागरूकता
की जड़े
जमा रही
थी। 1857 की
क्रांति इसका प्रथम
एवं बड़ा
प्रयास था। ‘‘यद्यपि
स्वतंत्रता
संग्राम के लिए
1857 में भारतीय
सैनिकों द्वारा पहली बार
किया जाने
वाला महाविद्रोह
था। छल-कपट
के माध्मम
से ही
भारतीयों
पर अंग्रेजों
का शासन
प्रारंभ हुआ। इसलिये
अंग्रेजों
के प्रति
भारतीयों
का क्रुद्ध
होना स्वभाविक
था। इसी
वजह से
ब्रिटिश शासन को
समाप्त करने का
प्रयास प्रारंभ हुआ।‘‘ पं.
सुंदरलाल
शर्मा के अनुसार
‘‘यदि 1857 की
क्रांति न
हुई होती
तो भारतीयों
में साहस
अभियान व जीवन साम्यर्थ
का अंत
हो गया
होता ताकि
अंग्रेजों
के मनोबल
अधिक बढ़
गया होता।
भारतीयों
की स्थिति
अफ्रीकी आदिवासियों की
तरह हो
जाती जिस
तरह यूरोपीयों
ने अफ्रीकी
संस्कृति
को समाप्त
कर यूरोपीयकरण
कर दिया।‘‘ |
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Received 07 July 2025 Accepted 08 August 2025 Published 29 September 2025 DOI 10.29121/ ShodhShreejan.v2.i2.2025.37 Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2024 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
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must be properly attributed to its author. |
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Keywords: Bilaspur District, Political
Awareness, बिलासपुर जिला, राजनीतिक जागरूकता |
भारत में अंग्रेजी
शासन की
स्थापना से भारतीयों
में आपसी
संघर्ष एवं फूट
के कारण
हुआ था
जिससे भारतीय लोगो में
अंग्रेजो
के प्रति
विरोधी प्रवृत्ति
होना स्वभाविक
था छत्तीसगढ़
इससे अछूता
नही रहा।
छत्तीसगढ़
में राजनैतिक
जागरूकता
की जड़े
जमा रही
थी। 1857 की
क्रांति इसका प्रथम
एवं बड़ा
प्रयास था। ‘‘यद्यपि
स्वतंत्रता
संग्राम के लिए
1857 में भारतीय
सैनिकों द्वारा पहली बार
किया जाने
वाला महाविद्रोह
था। छल-कपट
के माध्मम
से ही
भारतीयों
पर अंग्रेजों
का शासन
प्रारंभ हुआ। इसलिये
अंग्रेजों
के प्रति
भारतीयों
का क्रुद्ध
होना स्वभाविक
था। इसी
वजह से
ब्रिटिश शासन को
समाप्त करने का
प्रयास प्रारंभ हुआ।‘‘ पं.
सुंदरलाल
शर्मा के अनुसार
‘‘यदि 1857 की
क्रांति न
हुई होती
तो भारतीयों
में साहस
अभियान व जीवन साम्यर्थ
का अंत
हो गया
होता ताकि
अंग्रेजों
के मनोबल
अधिक बढ़
गया होता।
भारतीयों
की स्थिति
अफ्रीकी आदिवासियों की
तरह हो
जाती जिस
तरह यूरोपीयों
ने अफ्रीकी
संस्कृति
को समाप्त
कर यूरोपीयकरण
कर दिया।‘‘
वस्तुतः छत्तीसगढ़ की जनता
ने भारतीय
स्वतंत्रता
आन्दोलन में प्राणों
की आहूति
देकर अपनी
महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। 1857 से पूर्व
छत्तीसगढ़
में कई
महत्वपूर्ण
संगठन अस्तित्व में आए।
बिलासपुर
जिला में
1857 के बाद
ब्रिटिश नीति में
बदलाव के परिणामस्वरूप
सामाजिक एवं साहित्यिक
संस्थानो
की स्थापना
जन जागरूकता
को बढ़ावा
देने के
लिए किया
गया। बिलासपुर
जिले में
राष्ट्रवाद
की जड़े
प्रारंभ से मजबूत
दिखाई देती है।
1870 में रीडिंग
क्लब की
स्थापना हुई इसी
समय बुद्धि
प्रकाश सभा की
स्थापना भी लोगो
को जागरूकता
प्रदान करने हेतु
किया गया।
1870 में ही
बिलासपुर
में बंगाल-नागपुर
रेलवे इंडस्टीट्यूट
की स्थापना
की गई।
इन संगठनांे
की स्थापना
लोगो में
राष्ट्रवाद
को बढ़ावा
देने एवं
राष्ट्रवाद
का प्रशिक्षण
देने हेतु
किया गया।
जनता को
राजनीतिक
रूप से
जागरूक बनाने के
लिए तथा
संगठित करने का
महत्वपूर्ण
माध्यम था।
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय
आन्दोलन का सीधा
जुड़ाव नागपुर के कांगे्रस
अधिवेशन से हुआ।
छत्तीसगढ़
से नजदीकी
होने के
कारण राष्ट्रीय
अधिवेशन में लोगो
ने भागीदारी
निभाई इस अधिवेशन
में अनेक
राजनेताओं
के साथ-साथ
कृषकों एवं मालगजारो
ने भी
बढ़चढ़कर भाग लिया
इससे इस
क्षेत्र में राजनीतिक
चेतना का विकास
हुआ। इस
अधिवेशन की अध्यक्षता
पी. आनंद
चार्लु ने किया
था। बिलासपुर
जिले से
श्री बद्री
प्रसाद साव जी
ने नागपुर
अधिवेशन में प्रधिनिधित्व
किया था
तथा रायपुर
से माधवराम
सप्रे सी.एम. ठक्कर,
रामदयाल तिवारी एवं वामनराव
लाखे भाग
लिये थे।
माधवराव सप्रे एवं
वामनराव लाखे गरमपंथी
राष्ट्रवादी
विचार से प्रभावित
थे। इस
अधिवेशन में कृषक
वर्गो एवं मालुजारो
का शामिल
होना जमीनी
स्तर पर
राष्ट्रीय
आन्दोलनो
के लोगो
में एकजुटता
दिखाई दी।
जन आन्दोलन
को मजबूत
करने एवं
राजनीतिक
प्रचार-प्रसार
हेतु सन्
1900 में माधवराव
सप्रे जी ने छत्तीसगढ़ मित्र नामक
समाचार पत्र का
सम्पादन किया। इसे
आम लोगो
तक पहुंच
सुनिश्चित
किया जिससे
राजनीतिक
साहित्य के प्रति
लोगो में
जिज्ञासा
पैदा हुआ।
‘छत्तीसगढ़
मित्र‘ समाचार पत्र के
प्रकाशन में प्रमुख
सहयोगी के रूप
में रामराव
चिंचोलकर
जी थे
यह छत्तीसगढ़
का प्रथम
समाचार पत्र था
इसे बिलासपुर
जिले पेण्ड्रा
से प्रकाशित
किया गया
था। यह
छ0ग0 प्रथम मासिक समाचार
पत्र था
हालांकि यह पत्रिका
केवल 3 वर्ष
तक प्रकाशित
हुआ इसके
पीछे प्रमुख
कारण आर्थिक
अभाव था।
राष्ट्रीय
अधिवेशन में छत्तीसगढ़
के प्रतिनिधि
हिस्सा लेते थे।
1905 में बनारस
अधिवेशन की अध्यक्षता
गोपालकृष्ण
गोखले ने की थी इस अधिवेशन में बिलासपुर
से बद्री
प्रसाद साव एवं
रामगोपाल
तिवारी शामिल हुये
थे जबकि
रायपुर क्षेत्र से वामनराव
लाखे, रविशंकर
शुक्ल, माधवराव सप्रे तथा
सी.एम. ठक्कर
हिस्सा लिये थे।
चूंकि राष्ट्रवादी
आन्दोलन का जोर
था पूर्वी
भारत में
राष्ट्रवादियों
का बोलबाला
था कई
संगठनो के राजनीतिक
कार्यक्रमो
के माध्यम
से लोगो
में जागरूकता
तेजी से
फैल रहा
था इस
स्थिति को तत्कालीन
वायसराय लार्ड कर्जन
ने रोकने
का प्रयास
किया उसने
प्रशासनिक
आधार पर
बंगाल को विभाजन
कर हिन्दू-मुस्लिम
के बीच
एकता में
फूट डालने
की कोशिश
की जिससे
राष्ट्रवाद
की चिंगारी
को बुझाया
जा सके।
1905 में कर्जन
ने बंगाल
विभाजन की घोषणा
की। 20 जुलाई
1905 को भारत
सचिव द्वारा
पारित हो गया।
छत्तीसगढ़
में बंगाल
विभाजन का विरोध
में बिलासपुर,
रायपुर, एवं दुर्ग
जन आन्दोलन
हुआ। बिलासपुर
में स्वतंत्रता
आन्दोलन का नेतृत्व
ताराचंद ने किया।
ताराचंद बिलासपुर जिले का
महत्वपूर्ण
कार्यकर्ता
था उसे
राजनैतिक
रूप से
जागृत प्रथम कार्यकर्ता
माना जाता
था। ताराचंद
ने बिलासपुर
जिले में
छात्रांे
को राजनैतिक
प्रशिक्षण
दिया साथ
ही श्रमिको
को राजनीतिक
जागरूकता
हेतु शिक्षित
किया। इनके नेतृत्व
में 1905 में
बिलासपुर
जिले में
बंगाल विभाजन विरोधी आन्दोलन का सफलता
पूर्वक संचालन किया गया।
बंग-भंग आन्दोलन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर
के अलावा
रायपुर एवं दुर्ग
जिले में
भी सफलतापूर्वक
संचालित हुआ। बैरिष्टर
सी.एम. ठक्कर
के नेतृत्व
में 1906 में
रायपुर में कांग्रेस
की शाखा
की स्थापना
हुआ। पंडित
सुंदरलाल
शर्मा का स्वेदेशी
आन्दोलन में महत्वपूर्ण
भूमि था।
वे अंतिम
सांस तक
स्वदेशी आन्दोलन से जुड़े
रहे। ऐतिहासिक
बंग-भंग आन्दोलन एवं स्वदेशी
आन्दोलन के सफलता
के पश्चात
सन् 1097 में
सूरत में
कांग्रेस
का राष्ट्रीय
अधिवेशन हुआ जिसमें
बिलासपुर
जिला से
डॉ. शिवराम
मुजे, रायपुर
से पंडित
सुन्दरलाल
शर्मा तथा धमतरी
जिले से
नारायण राव मेघावले
ने प्रतिनिधित्व
किया।
इस अधिवेशन
में गरमदल
विचारधारा
के समर्थक
लोकमान्य
बाल गंगाधर
तिलक एवं
नरमदल के समर्थक
गोपालकृष्ण
गोखले के बीच
विचारधारा
के स्तर
पर संघर्ष
प्रारंभ हो गया
इस लड़ाई
में दोनो
गुटो के
बीच खींच
तान-धक्का
मुक्की की स्थिति
पैदा हो
गई। इस
स्थिति को देखकर
छत्तीसगढ़
के प्रतिनिधिमण्डल
द्वारा तिलक को
बचाने का कार्य
किया इसके
साथ ही
छत्तीसगढ़
वापस लौटकर
खादी प्रचार
किया, तथा
स्वदेशी वस्तुओं की दुकान
खोला। इस प्रकार
सूरत अधिवेशन
कांग्रेस
के लिए
घातक साबित
हुआ। गरमदल
एवं नरमदल
के बीच
फूट पड़
गया और
दो दलो
में विभाजन
हो गया।
सूरत विभाजन
से राष्ट्रवाद
को काफी
धक्का लगा इसके
पश्चात कुछ समय
तक राजनीतिक
खालीपन का सामना
करना पड़ा
हालांकि समय-समय पर राजनीतिक
गतिविधयां
सामान्तर
रूप से
घटित होती
रही।
रायपुर में प्रांतीय
कांग्रेस
का तृतीय
सम्मेलन सूरत विभाजन
के पश्चात
आयोजित सम्मेलन था। यह
सम्मेलन रायपुर के टाउन
हाल में
सन् 1907 में
आयोजित किया गया।
इस अधिवेशन
की अध्यक्षता
श्री केलकर
महोदय ने किया
तथा स्वागताध्यक्ष
श्री हरिसिंह
गौर थे।
इस सम्मेलन
में दादा
साहब खापर्डे
का विचार
था कि
सम्मेलन की शुरूआत
‘वन्दे मातरम‘ से करें किन्तु
डॉ. हरिसिंह
गौर इस
विचार से सहमत
नही थे
इस बात
से नाराज
होकर दादा
साहब खापर्डे
और डॉ.
शिवराम मुंजे अपने
सहयोगियों
के साथ
सम्मेलन छोड़कर चले
गए हालांकि
पं. रविशंकर
शुल्क ने सम्मेलन
‘वन्दे मातरम‘ से शुरू करने
के लिए
लोगो को
सहमत कर
लिया था
किन्तु डॉ. खापर्डे
वापस नहीं
आए। इस
सम्मेलन में गरम
दल का
वर्चस्व रहा इस
घटना के
बाद केन्द्रीय
कांग्रेस
की भांति
छत्तीसगढ़
प्रांतीय
कांग्रेस
का गरममदल
एवं नरमदल
में विभाजन
हो गया।
इसमें बिलासपुर जिले से
गरमदल के नेता
ई. राघवेन्द्र
राव तथा
नरम दल
के नेता
डॉ. शिवराम
मुंजे सम्मेलन में शामिल
थे।
इस अधिवेशन
में बिलासपुर
जिले के
नेताओ की विशेष
भूमिका थी। यह
अधिवेशन नागपुर में सम्पन्न
हुआ। इसमें
एक समिति
का गठन
किया गया
जिसका उद्देश्य वर्ष भर
राजनीतिक
गतिविधियों
से संबंधित
कार्य करना था।
इस समिति
का नाम
सी.पी. एण्ड
बरार प्रोविन्सियल
एसोसिएशन
था जिसका
मुख्यालय
नागपुर था। इस
अधिवेशन की महत्वपूर्ण
विशेषता थी, कि नरमदल एवं
गरमदल दोनो विचारधारा
से संबंधित
नेता एकसाथ
भाग लिये
थे दोनो
पक्षों के मध्य
बिलासपुर
जिले के
नेता ई. राघवेन्द्र
राव ने
इसकी मध्यस्थता
की थी
इस अधिवेशन
के दौरान
1195 प्रतिनीधि
शामिल हुए। बिलासपुर
जिले के
महत्वपूर्ण
प्रतिनीधियों
ने भाग
लिया जिसमें
प्रमुख घनश्याम सिंह गुप्त,
मुंशी अकबर खां,
नागेन्द्रनाथ
डे, ठाकुर
मनमोहन सिंह, त्रियम्बकराव
देहनकर थे।
सूरत की फूट
के घटना
के पश्चात
तिलक को
6 वर्ष के
कैद की
सजा सुनाया
गया। उन्हे
माण्डले जेल में
रखा गया
16 जून 1914 को
जेल से
रिहा हुए
और होमरूल
नामक नई
संगठन की स्थापना
की। इस
लीग के
प्रमुख सहयोगी आयरिश महिला
एनी बेसेंट
थी। मध्यप्रांत
भी इसकी
शाखाएं खोली गई
बिलासपुर
में होमरूल
लीग के
कार्यकर्ताओं
ने बढ़चढ़कर
हिस्सा लिया बिलासपुर
में 70 सदस्य
सक्रिय रूप से
शामिल थे जो तिलक गुट
के सक्रिय
कार्यकर्ता
थे यहां
के सदस्यों
ने आन्दोलन
को सफल
बनाने में अपना
सबकुछ दांव पर
लगा दिया।
1915 में बिलासपुर
में लीग
की एक
शाखा स्थापित
किया गया।
तथा बिलासपुर
के कार्यकर्ता
अपने लक्ष्य
को ध्यान
में रखकर
कार्य करते थे।
बिलासपुर
होमरूल लीग के
सक्रिय कार्यकर्ता
ई राघवेन्द्र
राव, कुंजबिहारी
अग्निहोत्री,
गजाधर साव, अम्बिका
प्रसाद वर्मा, गोविन्द
प्रसाद तिवारी, मुन्नीलाल
स्वामी थे। लोकमान्य
बालगंगाधर
तिलक जी
के प्रति
छत्तीसगढ़
के लोग
बहुत प्रभावित
थे, इस
तिलक जी
के यात्रा
से अनुमान
लगा सकते
है। तिलक
जी जब
लखनऊ कांग्रेस
अधिवेशन के पश्चात
जनवरी 1917 में कलकत्ता
से नागपुर
प्रस्थान
कर रहे
थे तब
रास्ते में बिलासपुर
में कुछ
समय लोगो
से मिले
जनता ने
उनका भरपूर
सम्मान किया।
हालांकि छत्तीसगढ़ के अन्य
स्थानो पर होमरूल
आन्दोलन का प्रभाव
पड़ा था
रायपुर में तिलकवादी
गुटांे का वर्चस्व
था यहां
रविशंकर शुक्ल, माधवराव
सप्रे, वामनराव लाखे, लक्ष्मणराव,
मूलचंद बागड़ी, प्यारेलाल
मिश्र, पं. विष्णुदत्त
शुक्ल के कार्य
उल्लेखनीय
है। इसी
तरह राजनांदगांव
मे ठा.
प्यारेलाल
एवं दुर्ग
में घनश्याम
सिंह गुप्त
होमरूल आन्दोलन को गांव-गांव
में प्रचार-प्रसार
कर लोगो
में जागरूकता
लाने का
प्रयास होमरूल के कार्यकर्ताओं
द्वारा किया गया।
स्वयं तिलक जी
द्वारा कार्यकर्ताओं
को होमरूल
आन्दोलन को बेहतर
तरीके से चलाने
का प्रेरणा
मिला था।
छत्तीसगढ़ प्रांत में सर्वाधिक
सक्रियता
बिलासपुर
जिले के
कार्यकर्ताओं
में था।
होमरूल लीग के
आन्दोलन से ब्रिटिश
सरकार घबरा गई
थी।
यह सम्मेलन
30-31 मार्च 1918 को रायपुर
में सम्पन्न
हुआ था
इसे संचालित
करने का
श्रेय पं. रविशंकर
शुक्ल, श्री डी.एन.
चैधरी, माधवराम सप्रे एवं
वामनराव लाखे को
जाता है।
इस सम्मेलन
में बिलासपुर
जिले से
कई महत्वपूर्ण
प्रतिनीधियों
ने अपनी
भागीदारी
निभाई तथा अनेक
महत्वपूर्ण
प्रस्ताव
पारित किये। बिलासपुर
जिले के
ई. राघवेन्द्र
राव, बैरिस्टर
छेदीलाल, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव,
जैसे लोग
शामिल हुए। दिल्ली
में 26 जनवरी
1918 को भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
का अधिवेशन
संपन्न हुआ। यह
अखिल भारतीय
कांग्रेस
कमेटी का सम्मेलन
था इसके
अध्यक्ष पं. मदनमोहन
मालवीय थे। इस
सम्मेलन में मध्यप्रांत
से 12 सदस्यों
को शामिल
किया गया
था जिसमें
छत्तीसगढ़
से दो
सदस्य शामिल हुए
थे इसमें
बिलासपुर
जिला से
ई. राघवेन्द्र
राव एवं
रायपुर से सी.एम.
ठक्कर ने प्रतिनिधित्व
किया था।
भारत में क्रांतिकारी
गतिविधियों
के दमन
के लिये
ब्रिटिश सरकार द्वारा
रोलेट एक्ट पारित
किया गया।
इस अधिनियम
के तहत
सरकार केवल संदेह
के आधार
पर गिरफ्तार
कर सकती
थी। मजिस्ट्रेट
किसी व्यक्ति
को संदेह
मात्र पर किसी
व्यक्ति को जेल
में डाल
सकता था
यह एक
काला कानून
था जिसमं
न वकील न दलील न अपील
की आवश्यकता
थी। इसे
ब्रिटिश सरकार द्वारा
21 मार्च 1919 को पारित
किया गया।
इस अधिनियम
का विरोध
कर गांधीजी
ने 6 अप्रेल
को आन्दोलन
का शुरूआत
किया उन्होने
अपनी आत्महत्या
में लिखा
कि ‘‘कोई
भी स्वाभिमानी
राष्ट्र वैसे कानून
को स्वीकार
नही कर
सकता। इस प्रकार
ब्रिटिश विरोध मे
सत्याग्रह
सभा की
स्थापना की गई।
इस विरोध
का प्रभाव
छत्तीसगढ़
में भी
दिखाई पड़ा कई
स्थानो पर विरोध
प्रदर्शन
हुए। बिलासपुर
जिले के
रतनपुर में बाबा
पुरूषोत्तमदास
के नेतृत्व
में मजदूरों
ने हड़ताल
किया जिससे
स्थानीय प्रशासन को कई समस्याओं का सामना
करना पड़ा।
पुरूषोत्तम
ने बांध
निर्माण में लगे
मजदूरो को हड़ताल
के लिए
प्रेरित किया जिससे
कार्य में अस्थिरता
आ गई और
काम ठप्प
हो गया।
ई. राघवेन्द्र
राव, बैरिस्टर
छेदीलाल, शिवदुलारे
मिश्र ने मिलकर
एक रैली
का आयोजन
कर रोलेट
एक्ट का
विरोध प्रदर्शन किया। काले
वस्त्र धारण कर
पचरी घाट
से प्रारंभ
कर पुरे
शहर में
भ्रमण किया नारे
लगाये, रैली को
देखकर बीच-बीच में लोग
शामिल होते गए
जिससे विरोधी वातावरण का दृश्य
अधिक भयावह
हो या
अंततः यह रैली
शनीचरी पड़ताव में
पहुंचकर सभा के
रूप में
तब्दील हो गई इस तरह
बिलासपुर
में काले
कानून के विरोध
में लोगो
ने बढ़चढ़कर
हिस्सा लिया और
ब्रिटिश सरकार के
आंखो में
आसू ला
दिया बिलासपुर
के अतिरिक्त
छत्तीसगढ़
के अन्य
शहरों मे जैसे
राजनांदगांव,
राजिम मे भी काले कानून
के विरोध
मे लोगो
ने क्रोध
व्यक्त किया। ठाकुर
प्यारे लाल सिंह
ने राजनांदगांव
मे विरोध
प्रकट किया तथा
राजिम मे पंडित
सुन्दरलाल
शर्मा के नेतृत्व
मे लोगो
को जागरूक
किया गया।
रायपुर मे पंडित
रविशंकर शुक्ल, माधवराव
सप्रे, महंत लक्ष्मीनारायण
दास थे।
30 मार्च 1919 को संपूर्ण
छत्तीसगढ़
मे हड़ताल
का आयोजन
किया गया
था। इस
प्रकार काला कानून
के विरोध
मे सभी
वर्ग सामने
आये।
REFERENCES
Behar, R. (2018). History of Chhattisgarh (p. 218). Raipur : Chhattisgarh
Hindi Granth Academy.
Nehru, M. L.
(1961). The voice of freedom
(p. 520).
Sharma, S. L.
(2016). British rule in India: Part 2.
Young India* newspaper. (1920, June 2).
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