POLITICAL AWARENESS IN BILASPUR DISTRICT

Political awareness in Bilaspur district

बिलासपुर जिले में राजनीतिक जागरूकता

Dr. Jeevan Lal Jaiswal 1

 

1 Department of History, India

 

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ABSTRACT

English: The establishment of British rule in India led to internal conflict and division among Indians, which naturally led to an anti-British sentiment among Indians. Chhattisgarh was not untouched by this. Political awareness was taking root in Chhattisgarh. The Revolution of 1857 was its first and major attempt. "Although the 1857 rebellion by Indian soldiers was the first major step towards the freedom struggle, the British rule over Indians began through deceit and fraud. Therefore, it was natural for Indians to be angry with the British. This led to the beginning of the effort to end British rule." According to Pt. Sundarlal Sharma, "If the Revolution of 1857 had not occurred, the courage, drive, and vitality of Indians would have been destroyed, further boosting the morale of the British. Indians would have become like African tribesmen, just as the Europeans destroyed African culture and Europeanized it."

 

Hindi: भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से भारतीयों में आपसी संघर्ष एवं फूट के कारण हुआ था जिससे भारतीय लोगो में अंग्रेजो के प्रति विरोधी प्रवृत्ति होना स्वभाविक था छत्तीसगढ़ इससे अछूता नही रहाछत्तीसगढ़ में राजनैतिक जागरूकता की जड़े जमा रही थी। 1857 की क्रांति इसका प्रथम एवं बड़ा प्रयास था। ‘‘यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम के लिए 1857 में भारतीय सैनिकों द्वारा पहली बार किया जाने वाला महाविद्रोह थाछल-कपट के माध्मम से ही भारतीयों पर अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआइसलिये अंग्रेजों के प्रति भारतीयों का क्रुद्ध होना स्वभाविक थाइसी वजह से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का प्रयास प्रारंभ हुआ।‘‘ पं. सुंदरलाल शर्मा के अनुसार ‘‘यदि 1857 की क्रांतिहुई होती तो भारतीयों में साहस अभियानजीवन साम्यर्थ का अंत हो गया होता ताकि अंग्रेजों के मनोबल अधिक बढ़ गया होताभारतीयों की स्थिति अफ्रीकी आदिवासियों  की तरह हो जाती जिस तरह यूरोपीयों ने अफ्रीकी संस्कृति को समाप्त कर यूरोपीयकरण कर दिया।‘

 

Received 07 July 2025

Accepted 08 August 2025

Published 29 September 2025

DOI 10.29121/ ShodhShreejan.v2.i2.2025.37  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2024 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

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Keywords: Bilaspur District, Political Awareness, बिलासपुर जिला, राजनीतिक जागरूकता

 


1.  प्रस्तावना

भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से भारतीयों में आपसी संघर्ष एवं फूट के कारण हुआ था जिससे भारतीय लोगो में अंग्रेजो के प्रति विरोधी प्रवृत्ति होना स्वभाविक था छत्तीसगढ़ इससे अछूता नही रहाछत्तीसगढ़ में राजनैतिक जागरूकता की जड़े जमा रही थी। 1857 की क्रांति इसका प्रथम एवं बड़ा प्रयास था। ‘‘यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम के लिए 1857 में भारतीय सैनिकों द्वारा पहली बार किया जाने वाला महाविद्रोह थाछल-कपट के माध्मम से ही भारतीयों पर अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआइसलिये अंग्रेजों के प्रति भारतीयों का क्रुद्ध होना स्वभाविक थाइसी वजह से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का प्रयास प्रारंभ हुआ।‘‘ पं. सुंदरलाल शर्मा के अनुसार ‘‘यदि 1857 की क्रांतिहुई होती तो भारतीयों में साहस अभियानजीवन साम्यर्थ का अंत हो गया होता ताकि अंग्रेजों के मनोबल अधिक बढ़ गया होताभारतीयों की स्थिति अफ्रीकी आदिवासियों  की तरह हो जाती जिस तरह यूरोपीयों ने अफ्रीकी संस्कृति को समाप्त कर यूरोपीयकरण कर दिया।‘

वस्तुतः छत्तीसगढ़ की जनता ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में प्राणों की आहूति देकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1857 से पूर्व छत्तीसगढ़ में कई महत्वपूर्ण संगठन अस्तित्व में आएबिलासपुर जिला में 1857 के बाद ब्रिटिश नीति में बदलाव के परिणामस्वरूप सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थानो की स्थापना जन जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए किया गयाबिलासपुर जिले में राष्ट्रवाद की जड़े प्रारंभ से मजबूत दिखाई देती है। 1870 में रीडिंग क्लब की स्थापना हुई इसी समय बुद्धि प्रकाश सभा की स्थापना भी लोगो को जागरूकता प्रदान करने हेतु किया गया। 1870 में ही बिलासपुर में बंगाल-नागपुर रेलवे इंडस्टीट्यूट की स्थापना की गईइन संगठनांे की स्थापना लोगो में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने एवं राष्ट्रवाद का प्रशिक्षण देने हेतु किया गयाजनता को राजनीतिक रूप से जागरूक बनाने के लिए तथा संगठित करने का महत्वपूर्ण माध्यम था

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आन्दोलन का सीधा जुड़ाव नागपुर के कांगे्रस अधिवेशन से हुआछत्तीसगढ़ से नजदीकी होने के कारण राष्ट्रीय अधिवेशन में लोगो ने भागीदारी निभाई इस अधिवेशन में अनेक राजनेताओं के साथ-साथ कृषकों एवं मालगजारो ने भी बढ़चढ़कर भाग लिया इससे इस क्षेत्र में राजनीतिक चेतना का विकास हुआइस अधिवेशन की अध्यक्षता पी. आनंद चार्लु ने किया थाबिलासपुर जिले से श्री बद्री प्रसाद साव जी ने नागपुर अधिवेशन में प्रधिनिधित्व किया था तथा रायपुर से माधवराम सप्रे सी.एम. ठक्कर, रामदयाल तिवारी एवं वामनराव लाखे भाग लिये थेमाधवराव सप्रे एवं वामनराव लाखे गरमपंथी राष्ट्रवादी विचार से प्रभावित थेइस अधिवेशन में कृषक वर्गो एवं मालुजारो का शामिल होना जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय आन्दोलनो के लोगो में एकजुटता दिखाई दी

जन आन्दोलन को मजबूत करने एवं राजनीतिक प्रचार-प्रसार हेतु सन् 1900 में माधवराव सप्रे जी ने छत्तीसगढ़ मित्र नामक समाचार पत्र का सम्पादन कियाइसे आम लोगो तक पहुंच सुनिश्चित किया जिससे राजनीतिक साहित्य के प्रति लोगो में जिज्ञासा पैदा हुआ। ‘छत्तीसगढ़ मित्रसमाचार पत्र के प्रकाशन में प्रमुख सहयोगी के रूप में रामराव चिंचोलकर जी थे यह छत्तीसगढ़ का प्रथम समाचार पत्र था इसे बिलासपुर जिले पेण्ड्रा से प्रकाशित किया गया थायह छ0ग0 प्रथम मासिक समाचार पत्र था हालांकि यह पत्रिका केवल 3 वर्ष तक प्रकाशित हुआ इसके पीछे प्रमुख कारण आर्थिक अभाव थाराष्ट्रीय अधिवेशन में छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि हिस्सा लेते थे। 1905 में बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपालकृष्ण गोखले ने की थी इस अधिवेशन में बिलासपुर से बद्री प्रसाद साव एवं रामगोपाल तिवारी शामिल हुये थे जबकि रायपुर क्षेत्र से वामनराव लाखे, रविशंकर शुक्ल, माधवराव सप्रे तथा सी.एम. ठक्कर हिस्सा लिये थे

चूंकि राष्ट्रवादी आन्दोलन का जोर था पूर्वी भारत में राष्ट्रवादियों का बोलबाला था कई संगठनो के राजनीतिक कार्यक्रमो के माध्यम से लोगो में जागरूकता तेजी से फैल रहा था इस स्थिति को तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन ने रोकने का प्रयास किया उसने प्रशासनिक आधार पर बंगाल को विभाजन कर हिन्दू-मुस्लिम के बीच एकता में फूट डालने की कोशिश की जिससे राष्ट्रवाद की चिंगारी को बुझाया जा सके। 1905 में कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की। 20 जुलाई 1905 को भारत सचिव द्वारा पारित हो गयाछत्तीसगढ़ में बंगाल विभाजन का विरोध में बिलासपुर, रायपुर, एवं दुर्ग जन आन्दोलन हुआबिलासपुर में स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व ताराचंद ने कियाताराचंद बिलासपुर जिले का महत्वपूर्ण कार्यकर्ता था उसे राजनैतिक रूप से जागृत प्रथम कार्यकर्ता माना जाता थाताराचंद ने बिलासपुर जिले में छात्रांे को राजनैतिक प्रशिक्षण दिया साथ ही श्रमिको को राजनीतिक जागरूकता हेतु शिक्षित कियाइनके नेतृत्व में 1905 में बिलासपुर जिले में बंगाल विभाजन विरोधी आन्दोलन का सफलता पूर्वक संचालन किया गया

बंग-भंग आन्दोलन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के अलावा रायपुर एवं दुर्ग जिले में भी सफलतापूर्वक संचालित हुआबैरिष्टर सी.एम. ठक्कर के नेतृत्व में 1906 में रायपुर में कांग्रेस की शाखा की स्थापना हुआपंडित सुंदरलाल शर्मा का स्वेदेशी आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमि थावे अंतिम सांस तक स्वदेशी आन्दोलन से जुड़े रहेऐतिहासिक बंग-भंग आन्दोलन एवं स्वदेशी आन्दोलन के सफलता के पश्चात सन् 1097 में सूरत में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें बिलासपुर जिला से डॉ. शिवराम मुजे, रायपुर से पंडित सुन्दरलाल शर्मा तथा धमतरी जिले से नारायण राव मेघावले ने प्रतिनिधित्व किया

इस अधिवेशन में गरमदल विचारधारा के समर्थक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं नरमदल के समर्थक गोपालकृष्ण गोखले के बीच विचारधारा के स्तर पर संघर्ष प्रारंभ हो गया इस लड़ाई में दोनो गुटो के बीच खींच तान-धक्का मुक्की की स्थिति पैदा हो गईइस स्थिति को देखकर छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधिमण्डल द्वारा तिलक को बचाने का कार्य किया इसके साथ ही छत्तीसगढ़ वापस लौटकर खादी प्रचार किया, तथा स्वदेशी वस्तुओं की दुकान खोलाइस प्रकार सूरत अधिवेशन कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआगरमदल एवं नरमदल के बीच फूट पड़ गया और दो दलो में विभाजन हो गयासूरत विभाजन से राष्ट्रवाद को काफी धक्का लगा इसके पश्चात कुछ समय तक राजनीतिक खालीपन का सामना करना पड़ा हालांकि समय-समय पर राजनीतिक गतिविधयां सामान्तर रूप से घटित होती रही

रायपुर में प्रांतीय कांग्रेस का तृतीय सम्मेलन सूरत विभाजन के पश्चात आयोजित सम्मेलन थायह सम्मेलन रायपुर के टाउन हाल में सन् 1907 में आयोजित किया गयाइस अधिवेशन की अध्यक्षता श्री केलकर महोदय ने किया तथा स्वागताध्यक्ष श्री हरिसिंह गौर थेइस सम्मेलन में दादा साहब खापर्डे का विचार था कि सम्मेलन की शुरूआतवन्दे मातरमसे करें किन्तु डॉ. हरिसिंह गौर इस विचार से सहमत नही थे इस बात से नाराज होकर दादा साहब खापर्डे और डॉ. शिवराम मुंजे अपने सहयोगियों के साथ सम्मेलन छोड़कर चले गए हालांकि पं. रविशंकर शुल्क ने सम्मेलनवन्दे मातरमसे शुरू करने के लिए लोगो को सहमत कर लिया था किन्तु डॉ. खापर्डे वापस नहीं आएइस सम्मेलन में गरम दल का वर्चस्व रहा इस घटना के बाद केन्द्रीय कांग्रेस की भांति छत्तीसगढ़ प्रांतीय कांग्रेस का गरममदल एवं नरमदल में विभाजन हो गयाइसमें बिलासपुर जिले से गरमदल के नेता ई. राघवेन्द्र राव तथा नरम दल के नेता डॉ. शिवराम मुंजे सम्मेलन में शामिल थे

इस अधिवेशन में बिलासपुर जिले के नेताओ की विशेष भूमिका थीयह अधिवेशन नागपुर में सम्पन्न हुआइसमें एक समिति का गठन किया गया जिसका उद्देश्य वर्ष भर राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित कार्य करना थाइस समिति का नाम सी.पी. एण्ड बरार प्रोविन्सियल एसोसिएशन था जिसका मुख्यालय नागपुर थाइस अधिवेशन की महत्वपूर्ण विशेषता थी, कि नरमदल एवं गरमदल दोनो विचारधारा से संबंधित नेता एकसाथ भाग लिये थे दोनो पक्षों के मध्य बिलासपुर जिले के नेता ई. राघवेन्द्र राव ने इसकी मध्यस्थता की थी इस अधिवेशन के दौरान 1195 प्रतिनीधि शामिल हुएबिलासपुर जिले के महत्वपूर्ण प्रतिनीधियों ने भाग लिया जिसमें प्रमुख घनश्याम सिंह गुप्त, मुंशी अकबर खां, नागेन्द्रनाथ डे, ठाकुर मनमोहन सिंह, त्रियम्बकराव देहनकर थे

सूरत की फूट के घटना के पश्चात तिलक को 6 वर्ष के कैद की सजा सुनाया गयाउन्हे माण्डले जेल में रखा गया 16 जून 1914 को जेल से रिहा हुए और होमरूल नामक नई संगठन की स्थापना कीइस लीग के प्रमुख सहयोगी आयरिश महिला एनी बेसेंट थीमध्यप्रांत भी इसकी शाखाएं खोली गई बिलासपुर में होमरूल लीग के कार्यकर्ताओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया बिलासपुर में 70 सदस्य सक्रिय रूप से शामिल थे जो तिलक गुट के सक्रिय कार्यकर्ता थे यहां के सदस्यों ने आन्दोलन को सफल बनाने में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। 1915 में बिलासपुर में लीग की एक शाखा स्थापित किया गयातथा बिलासपुर के कार्यकर्ता अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य करते थेबिलासपुर होमरूल लीग के सक्रिय कार्यकर्ताराघवेन्द्र राव, कुंजबिहारी अग्निहोत्री, गजाधर साव, अम्बिका प्रसाद वर्मा, गोविन्द प्रसाद तिवारी, मुन्नीलाल स्वामी थेलोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी के प्रति छत्तीसगढ़ के लोग बहुत प्रभावित थे, इस तिलक जी के यात्रा से अनुमान लगा सकते हैतिलक जी जब लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के पश्चात जनवरी 1917 में कलकत्ता से नागपुर प्रस्थान कर रहे थे तब रास्ते में बिलासपुर में कुछ समय लोगो से मिले जनता ने उनका भरपूर सम्मान किया

हालांकि छत्तीसगढ़ के अन्य स्थानो पर होमरूल आन्दोलन का प्रभाव पड़ा था रायपुर में तिलकवादी गुटांे का वर्चस्व था यहां रविशंकर शुक्ल, माधवराव सप्रे, वामनराव लाखे, लक्ष्मणराव, मूलचंद बागड़ी, प्यारेलाल मिश्र, पं. विष्णुदत्त शुक्ल के कार्य उल्लेखनीय हैइसी तरह राजनांदगांव मे ठा. प्यारेलाल एवं दुर्ग में घनश्याम सिंह गुप्त होमरूल आन्दोलन को गांव-गांव में प्रचार-प्रसार कर लोगो में जागरूकता लाने का प्रयास होमरूल के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गयास्वयं तिलक जी द्वारा कार्यकर्ताओं को होमरूल आन्दोलन को बेहतर तरीके से चलाने का प्रेरणा मिला था

छत्तीसगढ़ प्रांत में सर्वाधिक सक्रियता बिलासपुर जिले के कार्यकर्ताओं में थाहोमरूल लीग के आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार घबरा गई थी

यह सम्मेलन 30-31 मार्च 1918 को रायपुर में सम्पन्न हुआ था इसे संचालित करने का श्रेय पं. रविशंकर शुक्ल, श्री डी.एन. चैधरी, माधवराम सप्रे एवं वामनराव लाखे को जाता हैइस सम्मेलन में बिलासपुर जिले से कई महत्वपूर्ण प्रतिनीधियों ने अपनी भागीदारी निभाई तथा अनेक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित कियेबिलासपुर जिले के ई. राघवेन्द्र राव, बैरिस्टर छेदीलाल, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, जैसे लोग शामिल हुएदिल्ली में 26 जनवरी 1918 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन संपन्न हुआयह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सम्मेलन था इसके अध्यक्ष पं. मदनमोहन मालवीय थेइस सम्मेलन में मध्यप्रांत से 12 सदस्यों को शामिल किया गया था जिसमें छत्तीसगढ़ से दो सदस्य शामिल हुए थे इसमें बिलासपुर जिला से ई. राघवेन्द्र राव एवं रायपुर से सी.एम. ठक्कर ने प्रतिनिधित्व किया था

भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों के दमन के लिये ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलेट एक्ट पारित किया गयाइस अधिनियम के तहत सरकार केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थीमजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को संदेह मात्र पर किसी व्यक्ति को जेल में डाल सकता था यह एक काला कानून था जिसमंवकीलदलीलअपील की आवश्यकता थीइसे ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 मार्च 1919 को पारित किया गयाइस अधिनियम का विरोध कर गांधीजी ने 6 अप्रेल को आन्दोलन का शुरूआत किया उन्होने अपनी आत्महत्या में लिखा कि ‘‘कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र वैसे कानून को स्वीकार नही कर सकताइस प्रकार ब्रिटिश विरोध मे सत्याग्रह सभा की स्थापना की गई

इस विरोध का प्रभाव छत्तीसगढ़ में भी दिखाई पड़ा कई स्थानो पर विरोध प्रदर्शन हुएबिलासपुर जिले के रतनपुर में बाबा पुरूषोत्तमदास के नेतृत्व में मजदूरों ने हड़ताल किया जिससे स्थानीय प्रशासन को कई समस्याओं का सामना करना पड़ापुरूषोत्तम ने बांध निर्माण में लगे मजदूरो को हड़ताल के लिए प्रेरित किया जिससे कार्य में अस्थिरतागई और काम ठप्प हो गया। ई. राघवेन्द्र राव, बैरिस्टर छेदीलाल, शिवदुलारे मिश्र ने मिलकर एक रैली का आयोजन कर रोलेट एक्ट का विरोध प्रदर्शन कियाकाले वस्त्र धारण कर पचरी घाट से प्रारंभ कर पुरे शहर में भ्रमण किया नारे लगाये, रैली को देखकर बीच-बीच में लोग शामिल होते गए जिससे विरोधी वातावरण का दृश्य अधिक भयावह हो या अंततः यह रैली शनीचरी पड़ताव में पहुंचकर सभा के रूप में तब्दील हो गई इस तरह बिलासपुर में काले कानून के विरोध में लोगो ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और ब्रिटिश सरकार के आंखो में आसू ला दिया बिलासपुर के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के अन्य शहरों मे जैसे राजनांदगांव, राजिम मे भी काले कानून के विरोध मे लोगो ने क्रोध व्यक्त कियाठाकुर प्यारे लाल सिंह ने राजनांदगांव मे विरोध प्रकट किया तथा राजिम मे पंडित सुन्दरलाल शर्मा के नेतृत्व मे लोगो को जागरूक किया गयारायपुर मे पंडित रविशंकर शुक्ल, माधवराव सप्रे, महंत लक्ष्मीनारायण दास थे। 30 मार्च 1919 को संपूर्ण छत्तीसगढ़ मे हड़ताल का आयोजन किया गया थाइस प्रकार काला कानून के विरोध मे सभी वर्ग सामने आये

 

REFERENCES

Behar, R. (2018). History of Chhattisgarh (p. 218). Raipur : Chhattisgarh Hindi Granth Academy.

Ministry of Information and Broadcasting, Government of India. (1993). Gazetteer: Bilaspur district (p. 77). New Delhi : Author.

Nehru, M. L. (1961). The voice of freedom (p. 520).

Sharma, S. L. (2016). British rule in India: Part 2.

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